5G सर्विस देर-सवेर तो आ ही जाएगी और आज की तारीख में लॉन्च होने वाले तकरीबन हर फोन इस तकनीक से लैस भी होते हैं. फिर ऐसा क्या है जिसकी वजह से 5G स्मार्टफोन की सप्लाई पर गहरा असर पड़ सकता है. दरअसल इसके पीछे सरकार का एक फैसला है. सरकार हैंडसेट टेस्टिंग की प्रक्रिया में बदलाव चाहती है. इकोनॉमिक
टाइम्स की खबर के अनुसार, दूरसंचार विभाग (DoT) 5G स्मार्टफोन को मार्केट में उतारने से पहले उसकी लोकल टेस्टिंग और फोन के लिए सर्टिफिकेशन लेने की बात कह रहा है. अब आपके मन में सवाल होगा कि क्या मोबाइल डिवाइस की टेस्टिंग अभी नहीं होती है. अगर होती है तो Airtel, Jio और Vi (वोडाफोन-आइडिया) को किस बात का डर सता रहा है. क्या है नई टेस्टिंग तकनीक को लेकर सरकार का फैसला? 5G सर्विस के इस साल के अंत तक व्यवसायिक तौर पर उपलब्ध हो जाने की पूरी उम्मीद है. ऐसे में इसका 5जी हैंडसेट की उपलब्धता से क्या कनेक्शन है? हम इन्हीं सवालों को जानने की कोशिश करेंगे.
अभी ऐसे होती है आपके स्मार्टफोन की टेस्टिंग
अभी देश में मोबाइल डिवाइस की टेस्टिंग ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) व आईटी और इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय (MeitY) के रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत होती है. अब (BIS) नाम आपने सुना होगा. नहीं भी सुना होगा तो ISI मार्क से तो जरूर परिचय होगा. BIS भारत सरकार के उपभोक्ता मंत्रालय (Ministry of Consumer Affairs) के अधीन काम करने वाली इकाई है और तमाम तरीके के सर्टिफिकेट जारी करती है. उदाहरण के तौर पर, गोल्ड के लिए बीआईएस तो दूसरे कई उत्पादों के लिए आईएसआई का सर्टिफिकेशन. इसी की देखरेख में मोबाइल डिवाइस का भी परीक्षण किया जाता है. बीआईएस IS 13252 स्टैंडर्ड के तहत मोबाइल डिवाइस को सर्टिफिकेट देती है. इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय ने सभी मोबाइल कंपनियों को BIS सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य किया है. एक बार इस टेस्ट से पास होने का मतलब है बिंदास तरीके से अपना प्रोडक्ट बेचने की छूट.मोबाइल टेस्टिंग के लिए कुछ नियम कायदे भी दूरसंचार विभाग की तरफ से तय किए गए हैं.
सभी मोबाइल हैंडसेट की SAR वैल्यू अधिकतम 1.6वॉट/किलोग्राम होनी चाहिए. यहां वॉट/किलोग्राम से मतलब है कि 1 किलोग्राम टिशू अधिकतम 1.6 वॉट तरंगों की पावर ही सोख सकता है. सार (SAR) वैल्यू से मतलब Specific Absorption Rate. ये एक किस्म का मापदंड होता है जिसकी मदद से हम ये माप सकते हैं कि किसी भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को इस्तमाल करते वक़्त उसमे से कितनी मात्रा में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें निकल रही हैं और हमारे शरीर के द्वारा सोख ली जा रही हैं. इस रेट को मापने के लिए ये देखा जाता है कि कितनी ताकत हमारे कितने वजन के टिशू द्वारा सोख ली जाती है. इसी स्टैंडर्ड मेजरमेंट को वॉट/किलोग्राम में मापा जाता है. 1 सितंबर 2013 से यही मानक अपनाए जा रहे हैं.
जैसे मोबाइल हैंडसेट के साथ IMEI डिटेल्स दिए जाते हैं, वैसे ही सार (SAR) वैल्यू का ज़िक्र करना भी जरूरी है. हैंडसेट इंडिया में बना हो या फिर आयात होकर आया हो, दोनों ही परिस्थिति में उसकी सार (SAR) वैल्यू मानकों के अनुरूप होनी चाहिए. एक बात गौर करने लायक है कि ये टेस्टिंग अभी रैंडमली होती है. कहने का मतलब हर डिवाइस को नहीं बल्कि एक सीरीज या एक स्पेसिफिकेशन्स वाले किसी-किसी डिवाइस को ही चेक किया जाता है.
ये तो वो तरीका है जो अभी चलन में है लेकिन जैसा हमने पहले कहा कि दूरसंचार विभाग ने 1 जनवरी 2023 से सभी 5G स्मार्टफोन को 'टेलीकॉम इक्विपमेंट के अनिवार्य परीक्षण और सर्टिफिकेशन (MTCTE)' नियंत्रण के फेज-5 के तहत लाने का फैसला किया है.
क्या है ये MTCTE सर्टिफिकेशन?
MTCTE (Mandatory Testing and Certification of Telecommunication Equipment ) मतलब हर डिवाइस की जांच और सर्टिफिकेशन. वैसे तो इसका मुख्य उद्देश्य विदेश से आने वाले सभी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की जांच करना था. सरकार ने साल 2010 में ही दूरसंचार उपकरणों के अनिवार्य परीक्षण के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी, लेकिन वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (WTO) के कुछ नियमों और अन्य कारणों के चलते इसे लागू करने में देरी हुई. साल 2017 में टेलीग्राफ एक्ट में संशोधन करके इसको लागू किया गया. संचार मंत्रालय के 5 सितंबर 2017 के Gazette of India vide G.S.R. 1131(E) PART XI के मुताबिक, दूरसंचार उपकरणों को तय मानकों पर आधारित परीक्षण और सर्टिफिकेशन प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा. अभी इसका फेज 3 और फेज 4 चल रहा है. फेज 3 में स्मार्टवॉच, ट्रैकिंग डिवाइस, स्मार्ट कैमरा, स्मार्ट इलेक्ट्रिसिटी मीटर और टेलीकॉम नेटवर्क्स के लिए बेस टावर स्टेशन (BTS) जैसे प्रोडक्ट्स हैं तो फेज 4 में ऑप्टिकल फाइबर, पॉइंट ऑफ सेल (POS) डिवाइस, राउटर, ट्रांसमिशन इक्विपमेंट, सैटलाइट कम्यूनिकेशन इक्विपमेंट, लैन स्विच जैसे प्रोडक्ट्स हैं. Advertisement
अभी इसका फेज 3 और फेज 4 चल रहा है.(image:pexels)
दूरसंचार विभाग के अंतर्गत आने वाला टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग सेंटर (TEC) इसके लिए अधिकृत है. सभी तरह के परीक्षण टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग सेंटर (TEC) और इंटरनेशनल लैबरोटरी एक्रिडिएशन कॉरपोरेशन (ILAC) द्वारा मान्यता प्राप्त लैब्स में ही किए जाएंगे और इनकी रिपोर्ट के आधार पर (TEC) सर्टिफिकेट जारी करेगा. अब इसका मतलब तो यही निकलता है कि DoT एक टेलीकॉम स्पेसिफिक जांच के तरीके को अमल में लाना चाहता है. MTCTE का फेज 5 अगले साल 1 जनवरी से लागू होने वाला है जिसके दायरे में 5G फोन भी आएंगे.
टेलिकॉम कंपनिया क्यों परेशान हैं?
अब ये बात किसी से छिपी नहीं है कि इन कंपनियों ने 5G तकनीक में भारी-भरकम पैसा लगाया है और इस खर्च की की भरपाई का सबसे अहम तरीका है कि यूजर्स 5G तकनीक आते ही उसका खूब उपयोग करने लगे. और इसके लिए ज़रूरत होगी 5जी स्मार्टफोन की. ऐसा नहीं है कि 5G तकनीक वाले फोन्स मार्केट में अभी नहीं है, लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है. उम्मीद यही जताई जा रही है कि 5जी तकनीक के आम यूजर्स के लिए उपलब्ध होते ही 5जी तकनीक से लैस स्मार्टफोन की बिक्री में तेजी आएगी. नए फोन्स मतलब 5G डेटा की ज्यादा खपत. इसी कारण से Airtel, Jio और Vi (वोडाफोन-आइडिया) नई सर्टिफिकेशन प्रक्रिया के खिलाफ हैं.इन कंपनियों ने दूरसंचार विभाग से कहा है कि उसके इस कदम से मार्केट में 5G फोन्स की कमी हो जाएगी. ET ने अपनी रिपोर्ट में इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के हवाले से बताया है कि MTCTE की प्रक्रिया में काफी समय खर्च होगा जिसका सीधा असर OEM (Original equipment manufacturer) पर पड़ेगा. मार्केट में उनकी पहुंच पर असर और नए डिवाइस के लॉन्च में देरी का भी अंदेशा जताया जा रहा है.
सभी ऑपरेटर्स ने सरकार से इस फैसले को वापस लेने के लिए कहा है. ऑपरेटर्स का प्रतिनिधित्व करने वाले सेल्युलर ऑपरेटर्स असोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI) ने टेलीकॉम सेक्रटेरी के. राजारमन को लिखे एक पत्र में अनुरोध किया है कि MTCTE सर्टिफिकेशन से जुड़े उन सभी नोटिफिकेशन को रद्द किया जाए जो कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स से जुड़े हैं. ऑपरेटर्स असोसिएशन ऑफ इंडिया में सिर्फ टेलीकॉम ऑपरेटर ही नहीं बल्कि Apple, Google, Nokia, Ericsson जैसी दिग्गज टेक कंपनियां भी जुड़ी हुई हैं.
देश एक तरफ 5G तकनीक के लिए बाट जोह रहा है, दूसरी तरफ हैंडसेट की सप्लाई से जुड़ी ये खबर निश्चित तौर पर बेचैनी व अनिश्चितता पैदा करती है. देखना होगा सरकार और टेलीकॉम ऑपरेटर्स इससे कैसे निपटते हैं.
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