The Lallantop
लल्लनटॉप का चैनलJOINकरें

स्मार्टफोन के 100% चार्ज होने के खेल में गुल्लू मत बनना, सच हम बताते हैं

क्या वाकई में आपका स्मार्टफोन 100 पर्सेंट चार्ज होता है?

post-main-image
स्मार्टफोन चार्जिंग में बहुत झोल है. (image-quickmeme & pexels)

क्या आपका फोन सच में 100 प्रतिशत (smartphone really charging) चार्ज होता है? सवाल खत्म होने से पहले गोली कि रफ्तार से जवाब मिलेगा, होता है भाई! पूरा 100 प्रतिशत बोले तो हंड्रेड पर्सेंट. हो सकता है आप कहो कि लगता है दिल्ली की 49 डिग्री वाली गर्मी में हमारा दिमाग गरम हो गया है, जो ऐसे सवाल पूछ रहे हैं. लेकिन अगर हम आपसे कहें की इसमें एक छोटू सा, मतलब बहुत छोटू सा झोल है तो. एकदम 'हाथी के दांत दिखाने के अलग और खाने के अलग' जैसा. शायद आप यकीन नहीं करेंगे, लेकिन स्मार्टफोन की बैटरी के ऐसे बहुत से दांत हैं. मतलब होता कुछ है और दिखता कुछ और है. स्मार्टफोन कंपनियां चार्जिंग के नाम पर लोगों को गुल्लू बनाती हैं. फिर बात चार्जिंग की स्पीड बढ़ाकर दिखाना हो या चार्जर की क्षमता में गोलमाल करना. दिलचस्प बात ये है ऐसा सिर्फ एक कंपनी नहीं, बल्कि सभी करती हैं.

100 का मतलब शतक नहीं हैं

ये एकदम ताजा तरीका है स्मार्टफोन कंपनियों का. फास्ट और सुपर फास्ट चार्जिंग के नाम पर आपके स्मार्टफोन में दिखता तो है '100%' लेकिन वास्तव में सच्चाई इससे कोसों दूर होती है. इसको समझने के लिए स्मार्टफोन से इतर जरा क्रिकेट का रुख करते हैं. अब समझिए कोई बल्लेबाज 94-95 पर बैटिंग कर रहा है और वो छक्का जड़ दे. हम कहेंगे भाई शतक हो गया. ठीक बात है, लेकिन एक-एक रन लेकर भी ऐसा हो सकता है. अब स्मार्टफोन कंपनियां ऐसे ही छक्के-चौके बैटरी के साथ लगा रही हैं. अगर स्मार्टफोन फुल चार्ज दिखा रहा है तो चार्जिंग बंद हो जाना चाहिए क्योंकि स्मार्टफोन कंपनियां ऐसा दावा करती हैं. लेकिन ऐसा होता नहीं है. फुल चार्ज दिखने के बाद भी फोन चार्ज होता रहता है.

स्टॉक एंड्रॉयड के असली अनुभव का दावा करने वाली एक कंपनी कहती है कि उसका एक फोन सिर्फ 29 मिनट में 100 प्रतिशत चार्ज हो जाता है. लेकिन टेस्ट करने पर पता चला की डिसप्ले पर फुल चार्ज दिखाने के बाद भी 20 मिनट और चार्जिंग चलती रही. मोटा-मोटी दोगुने से थोड़ा सा ही कम.

देश के स्मार्टफोन बाजार में एक नंबर पर होने का झंडा बुलंद करने वाली कंपनी के फोन में भी फुल चार्ज के बाद 12 मिनट और चार्जिंग चलती रही. हमाम में सब कपड़े पहने हैं, मतलब ऐसे झोल-झाल तो सैमसंग और ऐपल भी करती हैं. बस शराफत इतनी है कि वो जीरो से सौ तक पहुंचने का कोई विज्ञापन नहीं करती हैं. कहने का मतलब क्रिकेट में शतक, शतक ही रहेगा फिर भले वो छक्के से आए या दुक्की से. लेकिन स्मार्टफोन में शतक एक-एक रन करके हो तो ही अच्छा.

लव चार्जिंग

अब लव चार्जिंग इसलिए क्योंकि स्मार्टफोन कंपनियों का प्यार हर दिन बढ़ता ही जा रहा है, चार्जिंग की ताकत से. 60 वॉट 80 वॉट तो हुए पुराने, 120 और 150 वॉट चार्जिंग का जमाना आ गया है. ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन ऐसा आएगा जब फोन को चार्जर का सिर्फ मुंह दिखाना होगा और काम खत्म. हमारी कल्पना की उड़ान अगर आपको मजाक लगे तो ये भारी-भरकम चार्जिंग पावर भी एक मजाक जैसी ही है.

कुछ महीने पहले एक कंपनी ने पूरे 120 वॉट चार्जिंग का दावा अपने स्मार्टफोन के साथ किया. लेकिन जब दूसरी एजेंसी ने टेस्ट किया तो नतीजे चौंकाने वाले निकले. रिबॉक की जगह रिबुक थमा दिया है. कहने को तो 120 वॉट है, लेकिन 80 वॉट से ऊपर चार्जिंग स्पीड कभी गई ही नहीं. पूरे 40 वॉट गायब है भाई. अब 80 वॉट भी कोई बुरा नहीं, लेकिन यूजर को बेवकूफ क्यों बना रहे हो.

एक और कंपनी तो चार्जिंग के साथ कबड्डी खेलती पकड़ी गई. उसका कहना है कि उनका चार्जर अधिकतम 65 वॉट तक चार्ज कर सकता है, लेकिन ऐसा हुआ सिर्फ पांच मिनट के लिए. जैसे कबड्डी में छू करके आते हैं ना, एकदम वैसे. 65 वॉट सिर्फ पांच मिनट के लिए हुआ और नीचे आ गया. कस्टमर के साथ कबड्डी खेलकर उसकी टांग खींचने का सही तरीका निकाला है.

कस्टमर के साथ कबड्डी (image-India Today)
हाथी के दांत

ऐसा ही एक और तरीका है स्मार्टफोन चार्जर के साथ. कंपनियां गला फाड़ कर बताती हैं कि फलां चार्जर उतने वॉट का है. तो अगर चार्जर 100 वॉट का है तो उसको प्लग से 100 वॉट पावर लेना चाहिए. अब ऐसा सच में होता तो हम यहां बता ही क्यों रहे होते. आनंदटेक ने जब 120 वॉट चार्जिंग का ढिंढोरा पीटने वाले चार्जर को प्लग में घुसाया तो पता चला कि महाशय तो 115 वॉट पावर ले पा रहे थे. अब इनपुट ही कम है तो आउटपुट क्या जादू से बढ़ जाएगा, वो भी 97 वॉट पर आकर ठहर गया. ऐसे कारनामों से गूगल बाबा के हाथ भी रंगे हुए हैं. कई एजेंसियों ने अपने टेस्ट में पाया कि पिक्सल फोन में चार्जर 30 वॉट कि जगह 21 और 23 वॉट ही लेता है.

हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और
साइकिल पंचर है

यहां बात बैटरी साइकिल की. स्मार्टफोन बैटरी की हेल्थ ठीक है या नहीं, इसको मापने का सबसे जाना माना तरीका है कि कितनी चार्जिंग साइकिल के बाद बैटरी क्षमता कम होगी. साइकिल से मतलब एक बार जीरो से फुल चार्ज होने और फिर जीरो पर आने से है. आमतौर पर रोज 100 पर्सेंट चार्जिंग इस्तेमाल करने पर स्मार्टफोन बैटरी 800 साइकिल सपोर्ट करती है. मोटा-मोटी कहें तो दो साल. इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि इसके बाद बैटरी का डब्बा गुल हो जाता है. बस परफॉर्मेंस थोड़ा कम होने लगती है.

ये तो हुई आइडियल कंडीशन, लेकिन क्या सच में बैटरी साइकिल ऐसे ही चलती है या पंचर भी होती है. मुद्दा ये है कि 800 साइकिल के बाद आखिरकार बैटरी कि क्षमता कितनी कम होनी चाहिए. कंपनियां कहती है 80%. कहने का मतलब अगर फोन बैटरी 5000mAh है तो दो साल बाद उसकी ताकत 4000mAh होनी चाहिए. वैसे ये देखने में अच्छा लगेगा, लेकिन 20 प्रतिशत कि गिरावट मतलब दिनभर के कुछ घंटे कम हो जाना. आजकल कि भागती दौड़ती जिंदगी में ये कुछ घंटे दिक्कत दे सकते हैं.

एक बात और, आजकल स्मार्टफोन कोई सस्ते तो आते नहीं हैं. एक आम यूजर कम से कम तीन साल और चार साल एक फोन इस्तेमाल करता है. ऐसे में बैटरी का ज्यादा चलना बहुत जरूरी है. स्मार्टफोन मार्केट कि एक दिग्गज जिसके फोन खरीदने के लिए किडनी बेचनी पड़ती है, उसकी बैटरी साइकिल पंचर ही नहीं बल्कि उसके तो ब्रेक भी फेल हैं. कहने का मतलब 800 साइकिल कि जगह सिर्फ 500 साइकिल में बैटरी का दम निकलने लगता है.

ऐसे कई और भी तरीके हैं. जैसे सिर्फ स्मार्टफोन के साथ आए चार्जर से ही फोन ढंग से चार्ज होता है. ग्लोबल चार्जिंग तकनीक की जगह खुद की तकनीक इस्तेमाल होती है. इसलिए अगली बार जब कोई स्मार्टफोन कंपनी अनाप शनाप दावे करे तो उनसे कहिए ये चूना अपने चाचा को लगाओ. हमें नहीं, क्योंकि हम तो लल्लनटॉप वाले हैं.