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फोन में वर्चुअल रैम या रैम प्लस फीचर कितने काम का? आंख खोलने वाला सच जान लीजिए

मिडरेंज सेगमेंट वाले अधिकतर स्मार्टफोन में वर्चुअल रैम का बोलबाला है आजकल, लेकिन खेल कुछ और ही है

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वर्चुअल रैम का रियल सच (तस्वीर: सोशल मीडिया)

स्मार्टफोन में रैम जितनी ज्यादा होगी उसका परफ़ोर्मेंस उतना मक्खन होगा. ऐसा माना जाता है. वैसे ये कोई इकलौता मानक नहीं हैं फोन शानदार-जबरदस्त-जिन्दाबाद होने के लिए. मगर एक बहुत जरूरी फैक्टर तो है ही. लेकिन ज्यादा रैम मतलब ज्यादा रकम. भले 4 और 6 जीबी रैम आजकल कॉमन हों, मगर 8 और 12 जीबी के लिए मोटी जेब ढीली करनी पड़ती है. ऐसे में स्मार्टफोन कंपनियों ने इसका जबर तोड़ निकाला. और वर्चुअल रैम (Virtual RAM) दे डाली. बजट और मिडरेंज सेंगमेंट में इसका खूब चलन है. 6 जीबी फिजिकल रैम के साथ 6 जीबी वर्चुअल फ्री-फ्री-फ्री. मगर ये वर्चुअल रैम रियल में कितने काम की है. पता करते हैं.

वर्चुअल रैम क्या है?

नाम से ही समझ आता है कि एक आभासी फीचर की बात हो रही है. फिजिकल रैम के हेल्पर की तरह काम करने के लिए वर्चुअल रैम को ईजाद किया गया है. मान लेते हैं कि स्मार्टफोन पर एक साथ चार ऐप या टास्क ओपन हैं और सभी ने रैम को पूरा खाया हुआ है. अब स्मार्टफोन पर एक और ऐप ओपन होता है तो वर्चुअल रैम का काम चालू हो जाता है. चारों में से किसी एक ऐप को स्मार्टफोन की इंटरनल मेमोरी (स्टोरेज) में ट्रांसफर कर दिया जाता है और पांचवें के लिए जगह बनाई जाती है. ऐसा किस ऐप के साथ होगा वो ऑटोमेटिकली डिसाइड होगा. माने कि अपनी जगह से कौन हिलेगा वो आखिर में ओपन हुए ऐप की ताकत पर निर्भर करेगा.  

वैसे वर्चुअल रैम कोई नई तकनीक नहीं है. कंप्यूटर पर इसका इस्तेमाल सालों से हो रहा है और अब स्मार्टफोन मेकर्स भी इसका इस्तेमाल जोर-शोर से कर रहे हैं. दावा करते हैं कि बिना एक्स्ट्रा पैसा खर्च किए बढ़िया स्पीड मिलेगी. अगर ऐसा वाकई में है तो फिर सारे फोन्स में इस्तेमाल क्यों नहीं होती. जो स्मार्टफोन मेकर्स वर्चुअल रैम का फीचर देते हैं वही 8-12 जीबी वाला फोन भी बनाते हैं. जवाब हम देते हैं.

थोड़ा तुम सरको थोड़ा हम खिसकें वाला मामला 

इस बात को समझने के लिए कोई टेक एक्सपर्ट होने की जरूरत नहीं है. दो उदाहरण से समझते हैं. एक टेबल पर चार लोग बैठ सकते हैं. अपन ने थोड़ा तुम सरको थोड़ा हम सरकें करके पांच या छह बिठा दिए तो क्या होगा. आप भले किसी की गोद में बैठें या फिर तसरीफ़ इधर-उधर करके. दिक्कत होना ही है. दूसरे अगर आप चार रोटी खाते हैं, लेकिन जौनपुर वाली बुआ के कहने पर छह रोटी खा लेते हैं और ऊपर से दो रसगुल्ले भी निपटा देते हैं तो क्या होगा. आप खा तो लेंगे लेकिन आगे बताने की जरूरत नहीं.

यहां भी वर्चुअल रैम के लिए स्मार्टफोन के इंटरनल स्टोरेज को जबरदस्ती इस्तेमाल किया गया. जबकि वो तो पहले से ही ऐप्स का स्टोरेज फिक्स करने में लगा हुआ है. लेकिन, अचानक से दरवाजे पर बिना दस्तक दिए बिना बुलाए मेहमान जैसे वर्चुअल रैम टपक जाती है. ऐसा करने से उसका अपना गुणा-गणित बिगड़ जाता है. नतीजा एक स्लो स्मार्टफोन. यानी स्मार्टफोन वर्चुअल रैम के चलते और स्लो हो जाता है. वैसे ये कोई सिर्फ हमारा आंकलन नहीं है. यूट्यूब पर कई जाने-माने टेक एक्सपर्ट ऐसी ही राय रखते हैं. साफ-साफ शब्दों में Gimmick कहते हैं. 

इसलिए अगली बार आप भी आभासी स्पीड के चक्कर में पड़ने वाले हों तो एक बार ठहर कर रियल वर्ल्ड में घूम लीजिए.  

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