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मार दिया जाए या छोड़ दिया जाए...बोल ऐप्स तेरे साथ क्या सलूक किया जाए!

स्मार्टफोन में ऐप्स बंद करने को लेकर बहुत सारी उलझने हैं.

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ऐप को कब बंद करना है और कब नहीं वो जानना बहुत जरूरी है. (image-memegenerator)

स्मार्टफोन में ऐप्स के इस्तेमाल की दो कंडीशन हो सकती हैं. पहला इस्तेमाल किया और सर्र से उंगली ऊपर फिराई और दूसरे ऐप पर आ गए. दूसरा सीधे होम बटन प्रेस किया और ऐप से बाहर आ गए. ऐप चला गया स्लीप मोड में या कहें तो हाइबरनेशन में. दुरुस्त फरमाया ना... लेकिन बंधु आपको जोर का झटका जोर से लगने वाला है, जब आपको पता चलेगा कि दोनों ही तरीके सही नहीं हैं. कहने का मतलब ऐप को कब बंद करना है और कब नहीं वो जानना बहुत जरूरी है. थोड़ा फिल्मी होकर बोलें तो स्मार्टफोन में ऐप्स को कब लोरी गाकर प्यार से थपकी देकर सुलाना है और कब ये बोलकर कि सो जा नहीं तो गब्बर आ जाएगा.

आम जीवन में एक सीख हम सभी को मिलती है कि चीजों का सही इस्तेमाल करो. फिर बात कमरे से बाहर निकलते ही बत्तियां बुझाने की हो या घर से बाहर जाते या अंदर आते समय कुंडी ढंग से लगाने की. कहने का मतलब किसी भी चीज को खोला है या इस्तेमाल किया है तो ढंग से बंद करना तो बनता है. ये तो हुई आम जीवन की बात लेकिन स्मार्टफोन के संदर्भ में भी ये एकदम सही बैठती है. कितने ही भ्रम हैं ऐप्स (close the apps on a smartphone) को लेकर, फिर बात बैटरी सेविंग की हो या स्मार्टफोन की ओवरऑल परफ़ोर्मेंस की. कितनी हकीकत है और कितना फ़साना. सब पता करेंगे, लेकिन पहले बात ऐप्स को बंद करने के तरीके की.

कैसे बंद करते हैं ऐप्स को?

आपके पास Android स्मार्टफोन है और अगर आप तीन बटन वाला (बैक-होम-रीसेन्ट) नेविगेशन इस्तेमाल करते हैं तो रीसेन्ट ऐप्स पर क्लिक करते ही होम स्क्रीन पॉपअप हो जाती है और सभी खुले हुए ऐप्स कार्ड्स की शक्ल में सामने आ जाते हैं. अब जिस ऐप को बंद करना है उसपर ऊपर की तरफ उंगली फिराई और काम हो गया. एक शॉट में मैच जीतना है, मतलब सारे ऐप्स एक साथ बंद करने हैं तो 'क्लोज़ ऑल' 'क्लियर ऑल' भी सामने ही मिल जाता है. अगर आप जेसचर नेविगेशन यूज करते हैं स्क्रीन पर नीचे से ऊपर की तरफ स्वाइप करने पर यही प्रोसेस होती है. वैसे ऐप्स को स्वाइप करके बंद करने की प्रोसेस कई फोन में थोड़ी अलग भी हो सकती है, जैसे ऊपर की जगह नीचे करने पर, लेकिन अमूमन तरीका यही होता है. अब बात एंड्रॉयड के बाद iPhone यूजर्स की. टच आईडी वाला है तो उस पर प्रेस करने से सारे ओपन ऐप्स सामने आ जाते हैं और फेस आईडी वाला है तो नीचे से ऊपर स्वाइप करने पर. वैसे स्क्रीन पर दिखने वाले स्पेस बार को दाएं-बाएं करने पर भी खुले हुए ऐप्स नजर आ जाते हैं. ऐप्स को बंद करने की प्रोसेस तो वही है, मतलब ऊपर की तरफ स्वाइप करके. लेकिन आईफोन यूजर्स के लिए दर्द देने वाली बात ये है कि उनके पास सारे ऐप्स एक साथ बंद करने का कोई ऑप्शन नहीं. उनको तो हर बार सिंगल लेकर ही स्कोर करना पड़ेगा. मतलब यार बहुत सारे ऐप्स खुले हों तो रील्स देखने वाले टाइम में कटौती करनी पड़ेगी. आईफोन यूजर्स...आई कैन फील योर पेन!

Android And Iphone
android and iPhone

Force Close, बोले तो मेंट*** ज़िंदगी

नाम से ही जाहिर है... ऐप्स को जबरन बंद करना. अब ऐसा क्यों करना पड़ता है वो भी जान लीजिए. कभी-कभी ऐप्स ढंग से काम नहीं करते. देर से ओपन होते हैं या जब चाहे क्रेश हो जाते हैं. ऐसे में आप कितने ही स्वाइप मार लीजिए, कोई फायदा नहीं होगा. इसका इलाज है फोर्स क्लोज़. आमतौर पर इसका इस्तेमाल कम होता है, लेकिन जब ऐप अपनी जिद पर अड़ जाएं तो ये करना ही पड़ता है. एंड्रॉयड फोन में फोर्स क्लोज़ दो तरीके से होता है. पहला ऐप पर प्रेस करेंगे तो मेन्यू पॉपअप होगा जिसमें इंफो पर क्लिक करते ही अनस्टॉल और फोर्स स्टॉप/क्लोज़ का ऑप्शन आएगा. दूसरा आप सेटिंग्स में ऐप मैनेजर में जाकर भी ऐसा कर सकते हैं. आईफोन यूजर्स का दुख यहां भी खत्म नहीं होता. सही पकड़े आप. ऐसा कोई ऑप्शन है ही नहीं. वैसे यहां दुख थोड़ा कम भी मान सकते हैं, क्योंकि Apple के मुताबिक iOS इस तरीके से बनाया गया है कि ऐप्स को फोर्स स्टॉप की जरूरत नहीं.

Force Stop
force stop

अब ये तो वो तरीके हुए जिनसे हम ऐप्स को क्लोज़ करते हैं. लेकिन असल बात ये है कि क्या ऐप्स को इस्तेमाल के तुरत बाद बंद करने की सच में जरूरत है क्या?

आजकल के स्मार्टफोन की बात करें तो उनके लिए ये दावा किया जाता है ऐप्स भले ओपन हैं और इस्तेमाल में नहीं तो स्लीप मोड या हाइबरनेशन में चले जाते हैं. इसका फायदा ये होता है कि जब आप ऐप फिर से ओपन करते हैं तो सबकुछ जीरो से स्टार्ट नहीं होता, बल्कि जहां आपने छोड़ा था ऐप वहीं से ओपन होता है. आसान भाषा में कहें तो स्लीप मोड में ऐप्स फोन की परफॉर्मेंस और बैटरी पर कोई असर नहीं डालते. अब सब बढ़िया है तो फोर्स स्टॉप की जरूरत क्यों पड़ती है. ऐप जब शांति से सो रहा था तो फिर क्रेश होने की बात क्यों आती है. तो इसके लिए हाइबरनेशन को समझते हैं. हाइबरनेशन मतलब वो स्थति जिसमें शरीर की प्रोसेस बहुत-बहुत धीमी हो जाती है. सांस लेने से हार्ट रेट तक सब धीमा हो जाता है. धीमा होता है, बंद तो नहीं. कहने का मतलब इस्तेमाल तो है भले बहुत कम हो. अब यही ऐप्स के साथ होता है. हाइबरनेशन है तो क्या हुआ. थोड़ा बहुत तो कुछ ना कुछ लेना पड़ेगा. अब आप कहोगे इसका मतलब ऐप को हर बार पूरा बंद करें और फिर स्टार्ट करने के लिए प्रोसेसर, रैम और बैटरी पर अतिरिक्त बोझ डालें. हम कहेंगे नहीं. आपको ऐसा नहीं करना है, बल्कि ऐप्स के लिए अपनी प्राथमिकता तय करनी है.

Hibernating Back In
hibernation (image-makememe)

स्मार्टफोन में तो ऐप्स की लाइन लगी पड़ी है लेकिन आप सारे ऐप्स इस्तेमाल करते हैं क्या. खुद सोचकर देखिए. कुछ चुनिंदा ऐप्स जैसे WhatsApp, Facebook, instagram और YouTube को छोड़ दिया जाए तो कई ऐप्स तो महीनों इस्तेमाल नहीं होते. उदाहरण के लिए, आपकी मोबाइल कंपनी का ऐप या कोई मेडिकल ऐप. शायद महीने में एक बार ही इस्तेमाल होते होंगे. आपको करना ये चाहिए कि जो ऐप लगातार इस्तेमाल होते हैं उनको क्लोज़ करने की जरूरत नहीं. लेकिन जिनसे वास्ता यदा कदा पड़ता है उनको ओपन करके पूरी तरह बंद करने में ही भलाई है.

साफ शब्दों में कहें तो जिन ऐप्स के साथ खेलना है ipl उनको हमेशा ओपन रखिए और जो आपके टेस्ट प्लेयर हैं उनको आराम दीजिए.

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