पिछले दिनों एक खबर आपने जरूर पढ़ी होगी. Apple के लिए नई मुसीबत आ गई है. ऐप्पल को अब चार्जर बदलना ही पड़ेगा. iPhone अब USB-C के साथ ही आएगा. सारी खबरों का लब्बोलुआब है यूरोपियन यूनियन का एक फैसला. फैसले पर अमल हुआ तो साल 2024 के आखिर तक सभी डिवाइस यूएसबी सी-टाइप चार्जर से चार्ज होंगे. ये तो हुई दूर देश की बात. लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि सिर्फ चार्जिंग से जुड़ी बात का बतंगड़ क्यों बना हुआ है.
USB-C ज़रूरी है या मजबूरी? इस सवाल का जवाब जान लीजिए...
स्मार्टफोन से लेकर कई अन्य इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स में यूएसबी-सी चार्जिंग पोर्ट आम हो चले हैं.
सिर्फ चार्ज ही तो करना है तो फिर यूएसबी-सी हो या ऐप्पल का लाइट्निंग केबल. क्या ही फर्क पड़ता है. इसके पीछे कोई शानदार तकनीक है या फिर बाजार का गुणा-गणित. ऐप्पल iPad और MackBook के बहुत से मॉडल में टाईप -सी पोर्ट देता है तो आईफोन में क्यों नहीं. सारे सवालों का जवाब मिलेगा आपको हमारी स्टोरी में.
क्या है USB-Cआपने फोन को चार्ज किया. चार्जर निकाला. उसे इलेक्ट्रिक आउटपुट पॉइंट से कनेक्ट किया. फिर दूसरे सिरे को स्मार्टफोन के चार्जिंग पॉइंट से कनेक्ट कर दिया. इस दौरान आपने एक बार भी नहीं सोचा कि आप कौन से पिन वाला चार्जर इस्तेमाल कर रहे हैं. ये सब पहले हुआ करता था. लेकिन अब आप ये सोचने के लिए मजबूर होते हैं कि चार्जर कौन से पोर्ट वाला है. टाइप सी है और यूएसबी 2.0. और Apple वालों के लिए तो मामला ही अलग है. चार्जर लगेगा सिर्फ और सिर्फ लाइटनिंग पोर्ट वाला. हम बात कर रहे हैं यूएसबी टाइप सी की. इसके आने से आम यूजर के लिए सबसे अच्छी बात ये हुई कि उसको स्मार्टफोन में खोंसते समय ये नहीं देखना पड़ता कि पिन सीधी है या उल्टी. पुराने यूएसबी 2.0 चार्जर की तरह इसमें इस बात का ध्यान भी नहीं रखना पड़ता कि केबल का कौन सा सिरा चार्जर की तरफ लगाना है और कौन सा डिवाइस में. वैसे ये वाली सुविधा हर डिवाइस में नहीं होती. लेकिन अब ट्रेंड में आ रही है. यूएसबी सी में चार्जिंग भी तेज होती है. हां, इसकी स्पीड इस बात पर निर्भर करती है कि चार्जर कितने वॉट का है और कौन सी तकनीक इस्तेमाल हुई है. ये तो हो गई आम सहूलियत लेकिन अब बात करते हैं इसके पीछे की तकनीक की.
इसके लिए ज़रूरी है मोबाइल चार्जर का गणित समझना. हमारे मोबाइल फोन के साथ आने वाले चार्जर की ताकत का पता चलता है वॉट्स (Watts) से. वॉट से मतलब है...चार्जर कितनी ऊर्जा आपके फोन को दे सकता है. चार्जर पर इसकी जानकारी होती है. आपका स्मार्टफोन ज़ीरो से 100 फीसदी तक कितनी जल्दी पहुंच जाएगा वो इस बात पर निर्भर करता है कि चार्जर कितनी ऊर्जा आपके फोन को देगा और उसी टाइम आपका मोबाइल कितनी ऊर्जा लेगा. उदाहरण के तौर पर किसी भी हैंडसेट को ले लीजिए. अगर वो 20 वॉट तक की चार्जिंग को सपोर्ट करता है तो वो 20 वॉट तक की ऊर्जा ले सकता है.
अब बात करते हैं फास्ट चार्जिंग की. फास्ट चार्जिंग अब आम बात हो गई है, पुराने वाले माइक्रो यूएसबी 2.0 पोर्ट से ज्यादा से ज्यादा 20 वॉट की पावर ही ट्रांसफर हो सकती है. लेकिन यूएसबी-सी से आप कहीं ज़्यादा पावर को ट्रांसफर कर सकते हैं. OnePlus के कुछ स्मार्टफोन 65 वॉट फास्ट चार्जिंग सपोर्ट करते हैं. Xiaomi के कुछ हैंडसेट तो 120 वॉट तक सपोर्ट करते हैं. OnePlus का फास्ट चार्जर बैटरी को आतंरिक रूप से दो भागों में बांटकर एक साथ चार्ज करता है. वही, शाओमी के फोन में बटरफ्लाई डुअल सीरियल बैटरी तकनीक इस्तेमाल होती है.
आजकल आने वाले स्मार्टफोन्स में ज्यादा रैम और तगड़ा प्रोसेसर होता है. तो वो बैटरी खपत भी ज्यादा करते हैं. अब इसके लिए स्मार्टफोन्स में ज्यादा एमएएच की बैटरी दी गई होती है जिसके लिए चार्जर भी दमदार चाहिए. जाहिर है ये काम तो यूएसबी-सी पोर्ट से ही हो सकता है.
चार्जिंग से इतर डेटा ट्रांसफर भी एक फैक्टर है. नॉर्मल माइक्रो यूएसबी 2.0 पोर्ट में जहां 450 MB प्रति सेकेंड की स्पीड से डेटा ट्रांसफर होता है तो वहीं, यूएसबी-सी से आप 5GB प्रति सेकेंड तक की स्पीड से डेटा ट्रांसफर कर सकते हैं.
यूएसबी-सी ही क्यों?यूएसबी-सी अब मार्केट का एक स्टेंडर्ड बन चुका है. बात अब स्मार्टफोन से लेकर लैपटॉप तक पहुंच गई है. यूएसबी-सी का वोल्टेज को संभालने का (0.5 वॉट से 100 वॉट) का फीचर सिर्फ एक चार्जर से कई सारे डिवाइस को चार्ज करने का दम रखता है. ऐसा होने का मतलब है बहुत सारे चार्जर से मुक्ति. इनके कई सारे प्रोडक्टस भी मार्केट में आसानी से उपलब्ध हैं. यूजर अपनी जरूरत और सहूलियत के मुताबिक इनको खरीद सकता है. अब इसका ये मतलब कतई नहीं है कि ऐप्पल की लाइट्निंग केबल और चार्जर फास्ट चार्ज नहीं करते. फास्ट चार्जिंग भी होती है और डेटा ट्रांसफर भी. लेकिन असली दिक्कत तो मोनोपॉली की है. अब लाइट्निंग केबल तो सिर्फ ऐप्पल प्रोडक्टस के साथ ही काम आएंगे. बाकी दूसरे प्रोडक्टस का क्या. दूसरी इनकी कीमत भी अच्छी खासी होती है. ये तो हुआ बाजार का गणित. अब जानते हैं कि यूरोपियन यूनियन (EU) ने ऐप्पल को यूएसबी सी पर ट्रांसफर करने को क्यों कहा.
डस्ट बिन की जरूरत कम पड़ेगीयूरोपियन यूनियन का मानना है कि उसके करीब 45 करोड़ नागरिकों को एक जैसे चार्जर मिलेंगे तो करीब 11 हजार टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा कम होगा. अब ये कोई छिपाने वाली बात तो है नहीं कि इलेक्ट्रॉनिक कचड़ा एक नई मुसीबत बनकर उभरा है. पैसा भी खूब बचेगा, 250 मिलियन यूरो (करीब 2,075 करोड़ रुपये). ये सिर्फ यूरोपियन यूनियन के देशों का आंकड़ा है. दुनियाभर का गणित आप खुद ही जोड़ लीजिए.